Monday, January 21, 2019

वो जो मंगल पर रहता है

वो जो मंगल पर रहता है
एक पत्थर 
जो यूँही पड़ा रहता है 
सदियों सदियों तक 

जिसका वजूद तो है 
पर किसे ख़बर 
न कोई रहबर 
न तूफ़ान का डर 
न ईमान की चिंता 
न कोई इलज़ाम, न सफाई 
न उठना, न बैठना 
न जीना, न मरना
न कोई प्रश्न कि मैं कौन हूँ 
कहाँ से आया हूँ, क्या करूँ, क्या न करूँ 
बस एक ही गुण, पड़े रहना 
या यूँ कहो, 'रहना' | 


जो धरती से एक चमकता तारा है 
जो धड़कते दिलों के लिए एक अद्भुत नज़ारा है 
जो है, और साबित है 
ज़र्रों से बना, खुद एक ज़र्रा है 
जो कलाकार है और श्रोता भी 
कृषक है, और उपभोक्ता भी 
जहाँ सब संचित है, और सब वंचित भी 

वहाँ ... 
क्यों कोई आये गुमराह हो कर 
और मेहमान बने इस बियाबान का 
क्यों कोई पासबाँ बन कर पहरा दे 
इस अनोखे शमसान का

वहाँ ... 
एक पत्थर 
जो यूँही पड़ा रहता है 
सदियों सदियों तक !











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