Saturday, January 26, 2008

मधुरिमा 4

तुम मुड़ कर देखती हो
तो हृदय में आहात होती है
तुमरे स्पर्श से मेरी प्रार्थना के शब्द
बदल जाते हैं।
तुम नही होती हो पास
तो मेरा मन मुझसे दूर होता है।
इस तरह तुम्हारे प्यार का असर
है कि मैं अपने में नही समा रह।
लक्ष्मण रेखाओं के पार
सोने कि लंका कि तरफ
मेरे पर मुझे खींच रहे हैं
अब तक जो निष्चल था
Us पानी को झिंझोड़ रहे हैं ।
बस ये ख्याल रहे
लंकाओं को बांधना मुझे आता हैं
लांघना नहीं।

Sunday, January 13, 2008

मधुरिमा 3

हे मधुरिमा,
तुमने मेरे मन के अँधेरे और उजाले देखें हैं,
मेरे मन के आवेग और संताप को जाना है,
हृदय में बहती चिर यौवनी प्रेम सुधा को पिया है,
मेरे मष्तिष्क कि तीन रंगी धारियों को छुआ है,
मंदिर में जब सब नाच रहे थे,
सिर्फ तुमने मुझे रोते देखा है,
जब में खुद को ढूंढ रहा था,
तुमने मुझको पाया है।

तुम मेरा देव हो प्रिये,
मेरा अस्तित्व तुम्हारा चढावा है,
मुझ हिम शिवलिंग पर,
उष्ण गंगा बनकर उतरो,
बह जाने दो वो सब, जो अस्थिर है।

चिर काल के हृदय में,
शंख धवनी के साथ जब,
मैं जब नया जन्म लूंगा,
माँ, तो तुम ही होगी मधुरिमा।

मधु १

हे मधुरिमा,
तुम मुझ पर एहसान हो सृष्टिकर्ता का,
जो मेरी कविताएँ चुकाएंगी।
तुम्हारा प्यार मुझे लील लेगा,
इसका भय है मुझको,
तुम्हारे प्यार में कविता का जन्म ,
मुश्किल तो नही होगा, पर उसमें दर्द रहित स्वर होंगे,
जो पहले कई बार दोहराए गए होंगे।

ओ मधुरिमा,
तुम आंसू कि एक बूँद हो जो,
मेरे गालों से चिपटी हो,
(दोनों) असहाय हैं,
एक दुसरे के साथ।

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Saturday, January 12, 2008

और कुछ कुछ

अपना मिलन अभी दूर है,
मन मद में चूर है,
शाम गहराती जाती है ,
अजीब सी उमस है,
कभी भीड़ तो कभी तन्हाई सताती है

कभी कभी अनायास
मंदिर से भजनों की गूँज सुने देती है,
कभी यकायक तेरी नज़र से
मेरी नज़र मिल जाती है
मैं कुछ बोल नही पाता हूँ ,
कितने फासले हैं अभी तक,
कितनी तीव्रता है तेरी नज़र में,
कितना असहाय और बेबस हूँ मैं ,
कबसे इंतज़ार में जागता हूँ
और इसी आशा में सोता हूँ,
कब तेरे जलजले आएंगे ,
और मुझे बहा ले जाएँगे,
पटक देंगे मुझे मीरा के पूजा स्थल पर,
या तुकाराम के पन्द्धारपुर में,
या फ़ेंक देंगे मुझे आलंदी के जंगलों में,
जहाँ में झोली में पत्थर बीन कर,
तेरे मंदिर में फेंकुंगा ,
और फूट फूट कर रोऊंगा,
कैसा पागलपन होगा वो,
कैसा प्रेम होगा वो,
शायद मैं तुझे फिर
नज़र नहीं मिल पाऊं
तेरे चरणों में जगह ज़रूर
बना लूँगा

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तेरी एक दृष्टि पड़ेगी करुणामयी,
रामकृष्ण बन जाएगा
जो रात दिन रोएगा, माँ माँ चिल्लाएगा ,
गली गली सोएगा, पगला जाएगा,
दिनों-दिन पूजा करेगा, ठोकरें खाएगा,
छत पर जा कर 'तुम कब आओगे' गाएगा
मष्तिष्क सुन्न हो जाएगा और संसाआर बधिर बन जाएगा
क्या तब तुम आओगे?
अंतरतम में बजेगी वीणा,
बाह्य स्थिर हो जाएगा,
अपने जन्म से सृष्टि के प्रारंभ तक,
प्रज्ञा के हर प्रकाश्मायी प्रसंग तक,
जब वो तेरा आव्हान करेगा,
अगिनत आत्माओं को छूकर ,
खुद जब वो पानी हो जाएगा,
क्या तब तुम आओगे?

जब ध्यान, प्रश्न रहित होगा,
जब ज्ञान वस्तु रहित हो जाएगा,
अस्तित्व कि परिभाषाएँ जब बदलेंगी
तत्त्व निर्गुण हो जाएगा ,
हज़ारों कबीर पैदा होकर,
लाखों मीरा तेरा नाम गाकर
मिटटी हो जाएंगी
शायद तब तुम आओगे

Tuesday, January 08, 2008

Raftaar pe mera nagma

रफ़्तारशहर में, रफ़्तार कशिश है
ठहराव का आँगन धुआं धुआं है
कौन रुके और झांके भीतर
बेताब समंदर कुआँ कुआँ है

सुबह हुई फिर सूरज निकला
धुप वाही खुशनुमा खिली
सदियों से इंसान को जिससे
नई उमंग नई वजह मिली
अब देखो किस कदर धुप से
इंसान परेशान होता है
देर रात जो जगह हो बन्दा
देर सुबह तक सोता है

कितना कौतुक कितना दम था
हर मकडी के जाल में
नदी किनारे तकते बीते
कितने दिन यूँही साल में
कुछ और जोश था कम होश था
समय कुछ ठहरा ठहरा था
जलजले में बह गयी वो बस्ती
जहाँ खुदा का पहरा था

ज़िंदगी की खुशबुएँ दब गयी हैं रफ़्तार में
हर रस्ते पर जामे मुसाफिर, बिज़ली गुल बाज़ार में